“भारत की शिक्षा परंपरा विश्व में प्राचीनतम और श्रेष्ठतम रही है। गुरुकुल, आश्रम, विद्या पीठ एवं छोटे छोटे प्राथमिक विद्यालयों में जीवन का सर्वतोंमुखी विकास होता था और व्यक्ति का तथा राष्ट्र का जीवन सुख, समृद्धि, संस्कार एवं ज्ञान से परिपूर्ण होता था। विश्व भी उससे लाभान्वित होता था। इन विद्याकेन्द्रों का आदर्श लेकर पुनरुत्थान विद्यापीठ कार्यरत होगा। “
- पुनरुत्थान विद्यापीठ की स्थापना सन् २००४ में हुई है। पुनरुत्थान विद्यापीठ सतत भारतीय शिक्षा की पुनः प्रतिष्ठा और मुख्यधारा में स्थापना हेतु प्रयासरत है।
- भारतीय शिक्षा भारतीय ज्ञानधारा पर आधारित अध्यात्मनिष्ठ व धर्मानुसारी हो, शिक्षा पद्धति सनातन और युगानुकूल हो, शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप अर्थनिरपेक्ष और स्वायत्त हो, शिक्षा आजीवन और सार्वत्रिक हो तथा वह व्यक्ति का समग्र जीवन विकास करे ऐसा विद्यापीठ का मूल विचार है। यही भारत की शिक्षा परंपरा भी रही है।
- इस हेतु से विद्यापीठ ६० वर्षों की (१२ वर्षों की अवधि के ५ तपों की) वृहत् योजनानुसार कार्यरत है।
पुनरुत्थान विधापीठ के तीन आधारभूत सूत्र हैं
विद्यापीठ पूर्णरूप से स्वायत रहेगा शिक्षा की स्वायत व्यवस्था इस देश की परंपरा रही है। इस परंपरा की पुन:प्रतिष्ठा करना शिक्षाक्षेत्र का महत्वपूर्ण दायित्व है। स्वायतता से तात्पर्य क्या है और स्वायत शिक्षातंत्र कैसे चल सकता है इसे स्पष्ट करने का प्रयास विद्यापीठ करेगा। विद्यापीठ शासन मान्यता से भी अधिक समाजमान्यता और विद्वन्मान्यता से चलेगा। विद्यापीठ शुद्ध भारतीय ज्ञानधारा के आधार पर चलेगा इस सूत्र के दो पहलू है।
१) विश्व के अन्यान्य देशो मे जो ज्ञानप्रवाह बह रहे है उनको देशानुकूल बनाते हुए भारतीय ज्ञानधारा को पुष्ट करना और २) प्राचीन ज्ञान को वर्तमान के लिए युगानुकूल स्वरूप प्रदान करना।विद्यापीठ की सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था नि:शुल्क रहेगी भारतीय परंपरा मे अन्न, औषध और विद्या कभी क्रयविक्रय के पदार्थ नहीं रहे। इस परंपरा को पुन:जीवित करते हुए इस विद्यापीठ मे अध्ययन करने वाले छात्रो से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। फिर भी अन्यान्य व्यवस्थाओ के लिये धन की आवश्यकता तो रहेगी। अत: यह विद्यापीठ सवार्थ मे समाजपोषित होगा। विद्यापीठ मे सादगी, श्रमनिष्ठा एवं अर्थंसंयम का पक्ष महत्वपूर्ण रहेगा। सुविधा का ध्यान रखा जाएगा , वैभव विलासिता का नहीं।
शिक्षा का भारतीय प्रतिमान
विधापीठ ने शिक्षा का भारतीय प्रतिमान विकसित किया है। इस प्रतिमान का शैक्षिक रूप है समग्र विकास।
एकात्म मानव दर्शन इस प्रतिमान का वैचारिक आधार रहेगा और छात्र के व्यक्तित्व का समग्र विकास इसका शैक्षिक लक्ष्य रहेगा| समग्र विकास के दो पक्ष है।
- सर्वांगीण विकास अर्थात शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक और चैतसीक (जिसे सामान्य रूप से आध्यात्मिक कहते हैं ) विकास। इसे उपनिषदों की भाषा मे अन्नमय, प्राणमय , मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय कोश का विकास कहते हैं।
- परमेष्ठीगत विकास अर्थात व्यक्ति का परिवार, समाज, देश, विश्व, सम्पूर्ण सृष्टी और यह सृष्टी जिससे नि:सृत हुई हे और जिसकी अभिव्यक्ति है उस परमेष्ठी के संदर्भ मे विकास।
इस द्ष्टि से जो करणीय कार्य होगे वे प्रमुख रूप से इस प्रकार के होंगे………
- वर्तमान मे पढ़ाये जाने वाले विषयो की समग्र विकास संकल्पना के अनुरूप पुनर्रचना होगी।
- भारतीय पद्धति से अध्ययन, अनुसंधान एवं निरूपण होगा।
- अध्ययन, अध्यापन पद्धतियो में भी परिवर्तन होगा | इसके साथ मूल्यांकन पद्धति भी बदलेगी।
- समग्र विकास की दृष्टि से वर्तमान में पढ़ाये जाते हैं इसके अलावा और भी विषय, जैसे की गोविज्ञान, उद्योग, संस्कृति एवं धर्म, भारतीय जीवनदृष्टि, योग, संस्कृत, गृहशास्त्र, अधिजननशास्त्र आदि विषयो का भारतीय स्वरूप बनाने के लिए अध्ययन, अनुसंधान, पाठ्यक्रमो की रचना, पाठ्य पुस्तकों का निर्माण और शिक्षकों का प्रशिक्षण आदि सब किया जाएगा।
विद्यापीठ के विभाग
विद्यापीठ की सम्भावनाये तो अनन्त हैं, परन्तु हर बडे कार्य का प्रारम्भ छोटा ही होता है। इस सूत्र के अनुसार विद्यापीठ में प्रारम्भ में चार विभाग कार्यरत है।
- अध्ययन एवं अनुसन्धान विभाग
- शिक्षा, संस्कृति, सभी सामाजिक शास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों में अध्ययन करना, अनुसन्धान करना, पठन पाठन सामग्री तैयार करना आदि कार्य इस विभाग में हो रहे है।
- शिक्षकशिक्षा विभाग
- जब इस देश का शिक्षक आचार्य बनकर अपना उदाहरण प्रस्तुत कर छात्र का चरित्रनिर्माण और समाज को सुसंस्कृत बनाना अपना दायित्व मानेगा तब इस देश की शिक्षा स्वायत्त होगी। ऐसा शिक्षक निर्माण करने हेतु शिक्षकशिक्षा, यह विद्यापीठ का दूसरा विभाग है।
- परिवार शिक्षा विभाग
- व्यक्ति के आचार, विचार, व्यवहार, कौशल, जीवनविषयक, दृष्टिकोण आदि सभी की शिक्षा जन्म से भी पूर्व गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है। संस्कार एवं चरित्रनिर्माण घर में ही होता है| साथ ही गृहस्थ धर्म के सम्यक पालन से ही समाज की धारणा होती है| अत: विद्यापीठ मैं परिवार शिक्षा का विभाग प्रारंभ हो गया है।
- लोकशिक्षा विभाग
- समाज वर्तमान में शिक्षा विषयक अनेक भ्रान्त धारणाओं से ग्रस्त है| इस स्थिति में जो विनाश का मार्ग है उसे ही विकास का मार्ग मानता है। अत: समाज प्रबोधन हेतु से लोकशिक्षा विभाग विद्यापीठ का चौथा महत्वपूर्ण विभाग है।
ये चारों विभाग एक साथ कार्यरत हैं।
अभी तक की प्रमुख उपलब्धियां
- विद्यापीठ प्रणीत और संशोधित अधिजनन शास्त्र आधारित “गर्भ संस्कार”, “वर वधू चयन और विवाह संस्कार” आदि कुटुंब शिक्षा के वर्ग देश भर में प्रचलित हैं।
- विद्यापीठ का शिशु वाटिका पाठ्यक्रम देश भर के शिशु वाटिका प्रकल्पों का मूल आधार है।
- विद्यापीठ का समग्र विकास पाठ्यक्रम बाल्यावस्था और किशोरावस्था की शिक्षा के विभिन्न विद्यालयों में सिद्ध है।
- विद्यापीठ ने १२५० से अधिक ग्रंथों का प्रकाशन कर देश में भारतीय ज्ञान के प्रसार हेतु आवश्यक पठन सामग्री सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। इन ग्रंथों में विभिन्न विषयों के सूत्र और शास्त्र ग्रंथ, भाष्य ग्रंथ, शोध ग्रंथ, आलेख, पाठावली और सामान्य पठन के ग्रंथ सम्मिलित हैं।
- विद्यापीठ ने २५० से अधिक ग्रंथों का पुनः मुद्रण कर भारत के लुप्तप्राय ज्ञान के स्रोतों को नई जीवनी दी है।
- विद्यापीठ ने ५०० से अधिक विद्वानों का भारतीय ज्ञानक्षेत्र की व्यवस्थिति हेतु सफल ध्रुवीकरण किया है। इस हेतु से विद्यापीठ सतत विद्वतगोष्ठियों का आयोजन करता है।
- विद्यापीठ ने शिक्षा व्यवस्था हेतु “समग्र जीवन विकास प्रतिमान” प्रस्तुत कर शिक्षा को जीवंत और मानव जीवन के साथ सहज रूप से जोड़ने का एक अनूठा और अति महत्वपूर्ण कार्य किया है।
- विद्यापीठ चिति नाम से अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिका प्रकाशित करता है। अभी तक १८ अंको में २०० से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
- विद्यापीठ द्वारा देश भर में कुटुंब और लोक प्रबोधन के असंख्य व्याख्यान प्रस्तुत किये है।
- प्रबुद्ध जनों के लिए ज्ञान साधना के त्रिस्तरतीय वर्गों का नियमित आयोजन विद्यापीठ के विभिन्न केंद्रों में आयोजित होता ही रहता हैं।
- विद्यापीठ की आचार्य अध्ययन योजना में ५० से भी अधिक भावी आचार्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।
- विद्यापीठ द्वारा युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था की समग्र जीवन विकास की शिक्षा हेतु योजना निर्माण कार्य अंतिम चरण में है।