पुनरुत्थान विद्यापीठ भारत में शिक्षा के भारतीयकरण के कार्य में समर्पित है। यह प्रक्रिया सरल भी नहीं है और शीघ्र होने वाली भी नहीं है। इस कार्य के अनेक ऐसे आयाम हैं जो पर्याप्त धैर्य और परिश्रम की अपेक्षा रखते हैं। अतः योजना को फलवती होने के लिए पर्याप्त समय देना आवश्यक है ।
हमारा अनुभव भी यही कहता है कि किसी भी बड़े कार्य की सिद्धि में एक पीढ़ी का त्याग, दूसरी पीढ़ी का अत्यंत परिश्रम और तीसरी पीढ़ी द्वारा विवेकपूर्ण व्यवहार आवश्यक होता है। इस प्रकार से कम से कम तीन पीढ़ियों का समय तो लगता ही है। विद्यापीठ ने तीन पीढियां का समय अर्थात् 60 वर्ष का समय मानकर योजना की है।
इस योजना के पाँच समान चरण हैं। प्रत्येक चरण बारह वर्षों का है। हमारे शास्त्र बारह वर्ष के समय को एक तप की संज्ञा देते हैं। इसलिए पुनरुत्थान की यह योजना वास्तव में पांच तपों की योजना है। प्रत्येक तप का केंद्रवर्ती विषय निर्धारित है। प्रत्येक तप में उसका केंद्रवर्ती विषय मुख्य और अन्य तप के विषय गौण रूप में होंगे।
इस प्रकार चरणबद्ध योजनाबद्ध और समर्पित रीति से पुनरुत्थान विद्यापीठ २००४ से कार्यरत है। हमे पूर्ण श्रद्धा है कि इन 60 वर्षों की अवधि में अपेक्षित परिवर्तन अवश्यसंभावी है।
इन तपों के केंद्रवर्ती विषय इस प्रकार हैं
- पहला तप नेमिषारण्य : जिस प्रकार महाभारत युद्ध के पश्चात कुलपति शौनक के संयोजकत्व में अट्ठासी हजार ऋषियों में बारह वर्ष तक ज्ञान यज्ञ किया था। उसी प्रकार वर्तमान समय में भी देश के विद्वत जनों को सम्मानित कर फिर से ज्ञान यज्ञ करने की आवश्यकता थी। फिर से शिक्षा का भारतीय प्रतिमान तैयार करने के लिए यह प्रथम चरण ।
- दूसरा तप लोकमत परिष्कार: शिक्षा सर्वजन समाज के लिए होती है। सर्वजन का प्रबोधन करना, शिक्षा के नए प्रतिमान को समाज में स्वीकृति दिलवाना, लोकजीवन में विद्यमान रूढ़ि, कर्मकांड, अंधश्रद्धा को परिष्कृत करना भी शिक्षा का कार्य है। अतः लोकमत परिष्कार या लोक शिक्षा, यह दूसरा चरण होगा।
- तीसरा तप कुटुंब सुदृढीकरण: शिक्षा व्यक्ति के जन्म पूर्व से ही शुरू हो जाती है। उस समय शिक्षा देने वाले माता पिता होते हैं। इसलिए माता को प्रथम गुरु कहा गया है। परिवार में संस्कार होते है, चरित्र निर्माण होता है। परिवार कुल परंपरा, कौशल परंपरा, व्यवसाय परंपरा तथा वंश परंपरा का वाहक होता है। अतः परिवार शिक्षा यह तीसरा चरण है।
- चौथा तप शिक्षक निर्माण: देश की भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए समर्थ शिक्षकों की आवश्यकता रहती है। जब तक दायित्व बोध युक्त और ज्ञान संपन्न शिक्षक नहीं होते, तब तक भारतीय शिक्षा देने वाले विद्या केंद्र नहीं चल सकते। इसलिए सुयोग्य शिक्षक निर्माण करना, यह योजना का चौथा चरण है।
- पांचवा तप विद्यालय संचालन: पहले चारों चरण ठीक से संपन्न हो गए तो पांचवा चरण सरल हो जाएगा। और निर्माण किए हुए शिक्षक जब देशभर में विद्यालय चलाएंगे, तभी भारतीय स्वरूप की शिक्षा दी जा सकेगी।